31-11-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

अनुभव की विल-पावर द्वारा माया की पावर का सामना

रुहानी ड्रिल जानते हो? जैसे शारीरिक ड्रिल के अभ्यासी एक सेकण्ड में जहाँ और जैसे अपने शरीर को मोड़ने चाहें वहाँ मोड़ सकते हैं, ऐसे रूहानी ड्रिल करने के अभ्यासी एक सेकेण्ड में बुद्धि को जहाँ चाहो, जब चाहो उसी स्टेज पर, उसी परसेन्टेज से स्थित कर सकते हो? ऐसे एवररेडी रूहानी मिलिट्री बने हो? अभाr-अभी आर्डर हो - अपने सम्पूर्ण निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ; तो क्या स्थित हो सकते हो? वा साकार शरीर, साकारी सृष्टि वा विकारी संकल्प न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करेंगे? इस देह की आकर्षण से परे एक सेकेण्ड में हो सकते हो? हार और जीत का आधार एक सेकेण्ड होता है। तो एक सेकेण्ड की बाजी जीत सकते हो? ऐसे विजयी अपने आपको समझते हो? ऐसे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान अपने को समझते हो वा अभी तक सम्पूर्ण सम्पत्तिवान बनना है? दाता के बच्चे सदा सर्व सम्पत्तिवान होते हैं, ऐसे अपने को समझते हो वा अभी तक 63 जन्मों के भक्तपन वा भिखारीपन के संस्कार कब इमर्ज होते हैं? बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए - चाहिए-चाहिए तो नहीं है? चाहिए शब्द दाता, विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता है? अभी तो विधाता और वरदाता बनकर विश्व की हर आत्मा को कुछ-न-कुछ दान वा वरदान देना है, न कि यह चाहिए, यह चाहिए... का संकल्प अभी तक करना है। दाता के बच्चे सर्व शक्तियों से सम्पन्न होते हैं। यही सम्पन्न स्थिति सम्पूर्ण स्थिति को समीप लाती है। अपने को विश्व के अन्दर सर्व आत्माओं से न्यारे और बाप के प्यारे विशेष आत्माएं समझते हो? तो साधारण आत्माएं और विशेष आत्माओं में अन्तर क्या होता है, इस अन्तर को जानते हो? विशेष आत्माओं की विशेषता यही प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देनी चाहिए जो सदा अपने को सर्व शक्तियों से सम्पन्न अनुभव करें। जो गायन है ‘‘अप्राप्त नहीं कोई वस्तु’’... वह इस समय जब सर्व शक्तियों से अपने को सम्पन्न करेंगे तब ही भविष्य में भी सदा सर्व गुणों से भी सम्पन्न, सर्व पदार्थों से भी सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज को पा सकेंगे। इसलिए अपने को ऐसे बनाने के लिए ही विशेष भट्ठी में आए हो। जो भी अपने में अप्राप्ति अनुभव करते थे, वह प्राप्ति के रूप में परिवर्तन हुए, कि अभी तक भी कोई अप्राप्ति अनुभव करते हो? यह प्राप्ति अविनाशी रहेगी ना। प्राप्ति अर्थात् प्राप्ति।

जब अनुभव-स्वरूप बन गये तो अनुभव की बातें अविनाशी होती हैं। सुनी हुई बातें, वायुमण्डल के प्रभाव के आधार पर प्राप्त हुई बातें वा कोई श्रेष्ठ आत्माओं के सुनने के आधार पर, उस प्रभाव के अन्दर प्राप्त हुई बातें अल्पकाल की हो सकती हैं, लेकिन अपने अनुभव की बातें सदाकाल की, अविनाशी होती हैं। तो सुनने वाले बने हो वा अनुभवीमूर्त बने हो? कि अभी फिर से सुनी हुई बातों को मनन करने के बाद अनुभवी बनेंगे? मिले हुए खजाने को अपने अनुभव में लाया है या वहाँ जाकर फिर लायेंगे? सभी से पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव-क्योंकि अनुभवी आत्मा में विल-पावर होती है। अनुभव के विल-पावर से माया की कोई भी पावर का सामना कर सकेंगे। जिसमें विल- पावर होती है वह सहज ही सर्व बातों का, सर्व समस्याओं का सामना भी कर सकते हैं और सर्व आत्माओं को सदा सन्तुष्ट भी कर सकते हैं। तो सामना करने की शक्ति से सर्व को सन्तुष्ट करने की शक्ति अपने अनुभव के विल- पावर से सहज प्राप्त हो जाती है। तो दोनों शक्तियों को अपने अन्दर अनुभव कर रहे हो? अगर दोनों शक्तियां आ गइंर् तो फिर विजयी बनेंगे। ऐसे विजयी बने हो? विजयी अर्थात् स्वप्न में भी संकल्प रूप में हार न हो। जब स्वप्न में हार नहीं होगी तो प्रैक्टिकल जीवन में तो होगी नहीं ना। ऐसे हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म विजयी हो अर्थात् हार का नाम-निशान नहीं। ऐसे सम्पूर्ण निशानी को एक सेकेण्ड में अपना निशाना बना सकते हो? जैसे जिस्मानी मिलिट्री वाले एक सेकेण्ड में अगर निशाना नहीं बना सकते तो हार खा लेते, निशाना ठीक होता है तो विजयी बन जाते हैं। ऐसे अपनी बुद्धि को इस निशाने पर एक सेकेण्ड में ठीक टिका सकते हो? ऐसे एवररेडी बने हो कि मेहनत करने बाद निशाने पर स्थित हो सकते हो? ऐसे प्रयत्न करते-करते विजय का सेकेण्ड तो बीत जायेगा, फिर विजय माला के मणके कैसे बन सकेंगे? इसलिए जैसे निरन्तर याद में रहना है वैसे निरन्तर विजयी बनो। ऐसी चेकिंग करो कि आज सारे दिन में संकल्प, वचन, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क, स्नेह, सहयोग और सेवा में विजयी कहाँ तक बने? अगर बहुत समय से सदा के विजयी, हर कदम के विजयी, हर संकल्प के विजयी रहेंगे तब ही विजय माला में समीप के मणके बन सकेंगे। इतनी सर्विस के बाद भी 108 ही विजयी क्यों बने? कैसे बने? इस पुरूषार्थ से ऐसे श्रेष्ठ बने। तो बहुत समय से सदा के विजयी बनेंगे तभी बहुत समय से यादगार बना सकेंगे। इसलिए अब क्या करेंगे?

भट्ठी का परिवर्तन यही करना है जो बहुत समय से सदा के विजयी बन जायें। ऐसे अनुभव अनेक आत्मायें आप लोगों द्वारा करके जायें - यह मधुबन अव्यक्ति वतन से अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने वाले अव्यक्त फरिश्ते व्यक्त देश में विश्व-कल्याण के निमित्त आये हुए हैं। आपके प्रवृत्ति वाले आप आत्माओं में ऐसा परिवर्तन अनुभव करें, इसको कहा जाता है भट्ठी का परिवर्तन। नैन रूहानियत का अनुभव करायें, चलन ब्प के चरित्रों का साक्षात्कार कराये, मस्तक मस्तकमणि का साक्षात्कार कराये। यह अव्यक्ति सूरत दिव्य, अलौकिक स्थिति का प्रत्यक्ष रूप दिखाये, आपकी अलौकिक वृत्ति कोई भी तमोगुणी वृत्ति वाले को अपने सतोगुणी वृत्ति की स्मृति दिलाये। इसको कहा जाता है परिवर्तन वा इसको ही सर्विसएबल कहा जाता है। जो हर कदम में सर्विस में तत्पर रहते हैं, ऐसे सर्विसएबल बने हो? ऐसे नहीं कि 4 घंटे की सर्विस करनी है। सदा के विजयी बनना है। सदा सर्विस में तत्पर रहने वाले सदा के सर्विसएबल का एक सेकेण्ड भी सर्विस के बिगर न जाये। ऐसे सर्विसएबल बनना - यही विशेष आत्माओं की विशेषता है। तो सभी बातों में फुल बनना है। बाप की महिमा में सभी शब्दों में फुल आता है ना। जो सभी बातों में फुल हैं वो फेल नहीं होते हैं। फुल में फ्लो नहीं होता है, इसलिए फेल नहीं होते हैं। न फेल होते हैं, न कोई व्यर्थ बातें फील करते हैं। थाडी-थोडी बातें फील करते हो ना। जो फुल होगा वह व्यर्थ बातों को फील नहीं करेंगे, न फेल होंगे। तो ऐसे तिलकधारी बने हो? सर्व शक्तियों से सम्पन्न का तिलक अपने मस्तक पर लगाया है? अगर यह तिलक जो सुनाया, सदा मस्तक पर नहीं लगा हुआ है तो याद में भी याद के बजाय क्या करते हैं? याद के बजाय फरियाद करते हैं। लेकिन अभी नहीं करेंगे? फरियादों की फाइल बन गई है। हरेक के फरियादों की फाइल मालूम है कितनी हैं? तो निरन्तर याद में रहने से, निरन्तर विजयी बनने से, निरन्तर सर्विसएबल बनने से फरियाद करने की आवश्यकता ही नहीं होगी। सम्पूर्ण कमजोरियों की आहुति डालने के लिए भट्ठी में आये हो। तो सर्व कमजोरियों की आहुति यज्ञ में डाल दी वा अभी रह गई है? जबकि आहुति डाल देते हैं तो अन्त में क्या कहते हैं? स्वाहा। फिर आप सभी स्वाहा हुए? जो स्वाहा हो चुके वह बीती हुई बातों को स्वप्न में भी नहीं देख सकते। ऐसे स्वाहा हुए? हिम्मत और उल्लास - यह दोनों ही अभी के रिजल्ट में मैजारिटी में दिखाई देते हैं। इसी हिम्मत और उल्लास को सदा के लिए अपनी वृत्ति बनाना। धरती नर्म भी है और फलीभूत भी है लेकिन अपनी फलीभूत धरती में बीती हुई पास्ट जीवन के विकर्म और विकर्म के कांटे बोने नहीं देना। कांटों को बाप के सामने समर्पण किया? सर्व कांटे जो अब तक अन्दर होने के कारण नुकसान करते रहते, वह अब बाप के सामने स्वाहा हुए। स्वाहा राख को भी कहते हैं। राख हुई चीज अथवा भस्म हुई चीज फिर कभी भी अपनी धरती में बोना नहीं अर्थात् स्मृति में नहीं लाना। स्वाहा अर्थात् नाम-निशान समाप्त।

आज से ऐसे ही समझना कि मुझ सतोगुणी आत्मा के यह संस्कार नहीं हैं अर्थात् यह मेरे संस्कार नहीं हैं। तो जैसे दूसरे के संस्कारों को साक्षी होकर देखते हो, वैसे अपने तमोप्रधान स्टेज के संस्कारों को भी ऐसे साक्षी हो देखना। ऐसे समाप्त कर देना। स्वाहा हो गया -- ऐसे समझने से ही सदा सफलता को पाते रहेंगे। अच्छा।